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1 अक्टूबर से सरकार को बिजली कंपनियों से मिलेंगे अतिरिक्त 1800 करोड़ रुपए…

शिमला :  हिमाचल प्रदेश में विद्युत उत्पादन कर रही कंपनियों से जल उपयोग का डेटा मांगा गया है। यह डेटा राज्य जल उपकर आयोग के बजाय जल शक्ति विभाग ने पत्र लिखकर मांगा है। पत्र में पूछा गया है कि कंपनियों ने विद्युत उत्पादन के लिए कितना पानी उपयोग किया। उसके बाद कंपनियों को बिल थमाए जाएंगे। माना जा रहा कि अक्टूबर में कंपनियों को वाटर सेस का बिल दिया जाएगा। प्रदेश सरकार द्वारा दरें संशोधित करने के बाद विद्युत कंपनियों को सालाना 1800 करोड़ रुपये का वाटर सेस चुकाना होगा। यदि मासिक वाटर सेस का आकलन किया जाए तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये चुकाने होंगे। प्रदेश में इस समय 172 छोटी-बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं कार्य कर रही हैं।वाटर सेस के विरुद्ध सभी जल विद्युत परियोजना प्रबंधन न्यायालय गए हैं। सुक्ष्म एवं लघु विद्युत परियोजनाओं की ओर से वाटर सेस देने से साफ इन्कार किया गया है। वाटर सेस को लेकर जिस तरह की परिस्थितियां नजर आ रही हैं, उसे देखते हुए उपयोग किए जल का डेटा निकालने के लिए राज्य ऊर्जा निदेशालय सक्रिय भूमिका में नजर आएगा।
बता दें कि प्रदेश सरकार के वाटर सेस लगाने के निर्णय के बाद पंजाब व हरियाणा की सरकारों ने आपत्ति जताई थी। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री विधानसभा में बजट सत्र के दौरान इसके विरोध में प्रस्ताव भी ला चुके हैं। उनका कहना था कि यह केंद्रीय अधिनियम यानी अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 का भी उल्लंघन है। केंद्र सरकार ने भी वाटर सेस लगाने से मना किया था। केंद्र ने पत्र लिखकर कहा था कि यदि हिमाचल प्रदेश ऐसा करता है तो केंद्र की ओर से दी जाने वाली सभी ग्रांट पर रोक लगा दी जाएगी।

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