Home » धर्म » “डगैली” यानी कि चुड़ैल की रात” आज से दो रात ख़ौफ़ से कटेंगे, क्यों खौफ खाते हैं लोग, डर या अंधविश्वास?

“डगैली” यानी कि चुड़ैल की रात” आज से दो रात ख़ौफ़ से कटेंगे, क्यों खौफ खाते हैं लोग, डर या अंधविश्वास?

सोलन : इसे अंधविश्वास कहें या सदियों से चली आ रही ये डर की परंपरा, हिमाचल के कुछ क्षेत्रों में लोग आज भी दो रात तक डर के साये से खौफ खाते हैं. जिसे “डगैली” कहा जाता है. दो दिन शिमला, सोलन व सिरमौर तीन जिलों के लोग डगैली यानी कि चुड़ैल के डर के साए में जीते है. “डगैली यानी कि चुड़ैल की रात”भाद्र महीने के कृष्ण पक्ष में चतुर्दशी और चर्तुदर्शी से एक दिन पहले छोटी और बड़ी डगैली आती है. इसे अघाेरा चतुर्दशी भी कहा जाता हैं.

 

माना जाता है कि इस दिन शिव के गण यानी भूत प्रेतों और बुरी आत्माओं का प्रभाव अधिक रहता है. बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए लोग इन जिलों में कई तरह के टोने- टोटके करते हैं. डॉ पंडित मस्त राम कहते हैं की 14 सितंबर को अमावस्या है. इस रात बुरी शक्तियाँ अपने पूरे शाबाब पर होती हैं, ऐसे में हिमाचल में इस रात लोग घरों से बाहर रहने से परहेज करते है. घरों में बुरा साया न पड़े इससे बचने के उपाए भी करते हैं.

इन क्षेत्रों के पुरोहित और आसपास के मंदिरों के पुजारी लोगों के घरों में सरसों के दाने पहुंचाते हैं. मान्यता है कि बुरी आत्माओं और भूत प्रेतों के असर से बचने के लिए ये इंतजाम किए जाते हैं. प्रदेश के तीन जिलों के 10 विधानसभा हलकों में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के जौनसार भाबर तक में इन दोनों रातों में बुरी आत्माओं से बचने के लिए डगैली यानी चुड़ैल से बचने के पूरे प्रबंध किए जाते हैं. इन रातों में लोग घरों से बाहर निकलने से भी डरते हैं.

माना जाता है कि डगैली की रात को बुरी आत्माएं अपने पूरे शबाब पर होती हैं. जिससे दुष्प्रभाव का ज़्यादा ख़तरा रहता है. जिससे बचने के लिए दोनों ही दिन दरवाजे पर टिंबर के पत्ते लगाते है. जिससे बुरी आत्माओं के घर के अंदर प्रवेश को रोकने का दावा किया जाता है. इसके अलावा भी कई तन्त्र टोटके लोग बुरी आत्माओं से बचने के लिए करते है. वैसे भी काला महीना तंत्र सिद्धि के लिए माना जाता है. यही वजह है कि इन अंधेरी रातों में लोग बुरी आत्माओं से ख़ौफ़ खाते हैं.

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