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राज्य में कार्यकाल के आखिर में प्रधानों को सस्पेंड करने का पैटर्न, चिंताजनक….

न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश राकेश कैंथला की खंडपीठ ने सरकार को यह सुनिश्चित करने के आदेश दिए हैं कि वहां पर कोई अवैध तरीके से प्रतिबंधित प्रजातियों के पेड़ों का कटान न हो।

शिमला : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि निर्वाचित प्रतिनिधियों के निलंबन के खिलाफ अपील पर फैसला टालना न्याय के मकसद को नाकाम कर देता है। जस्टिस अजय मोहन गोएल ने एक मामले कि सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि राज्य भर में कार्यकाल के आखिर में प्रधानों को सस्पेंड करने का पैटर्न उभर रहा है, जो चिंताजनक है। उन्होंने अपीलीय अधिकारी से उम्मीद जताई कि मामला जल्द से जल्द निपटाया जाना चाहिए, लेकिन इसका लंबित रहना अपील का उद्देश्य ही खत्म कर देता है। दरअसल ,मामला चंबा जिले के ग्राम पंचायत प्रधान कांतो का है। 19 जुलाई 2025 को उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। नाराजगी में उन्होंने हिमाचल प्रदेश पंचायती राज एक्ट 1994 की धारा 148 के तहत डिप्टी कमिश्नर चंबा के पास अपील दाखिल की। सुनवाई 21 अगस्त को हुई और 4 सितंबर को फैसला रिजर्व रखा गया। लेकिन फैसला आने के बजाय रीडर ने केस को 4 दिसंबर 2025 तक टाल दिया, जो बिना अधिकार के तय तारीख थी। याचिकाकर्ता ने इसके बाद  हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और दावा किया कि फैसला तीन महीने की देरी अन्यायपूर्ण है, खासकर जब उनका कार्यकाल दिसंबर में खत्म हो रहा था। इस मामले पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि रिजर्व करने के बाद भी फैसला न सुनाना अध्यक्ष की उदासीनता दिखाता है। नतीजतन, सस्पेंशन ऑर्डर पर रोक लगा दी गई और कांतो को ड्यूटी पर लौटने की इजाजत मिली।

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