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धारा 118 का उल्लंघन कर खरीदी जमीन का 36 साल पुराना बेनामी सौदा रद्द

शिमला: हिमाचल प्रदेश में बेनामी ज़मीन सौदों पर कड़ा प्रहार करते हुए मंडलीय आयुक्त शिमला संदीप कदम (आईएएस) ने बड़ा फैसला सुनाया है। उन्होंने ज़िला कलेक्टर सोलन के 2011 के आदेश को सही ठहराते हुए अपील खारिज कर दी है, जिससे अब सोलन जिला की कसौली तहसील के बुरानवाला गांव की 16 बिस्वा ज़मीन और उस पर बने दो मंज़िला मकान को सरकार अपने कब्ज़े में लेगी। मामले की शुरुआत वर्ष 1989 में हुई, जब गैर-कृषक जगमोहन सिंह ने यह जमीन ईश्वर दास के नाम पर खरीदी। असल में इसकी कीमत जगमोहन ने चुकाई थी। जांच में पता चला कि जगमोहन ने इस जमीन पर दो सेट वाला मकान बनाया। एक सेट किराये पर चढ़ाकर लाखों रुपये की सालाना आय अर्जित करता रहा और दूसरे में स्वयं रहता था।

2006 में उपायुक्त सोलन के सामने आया मामला

वर्ष 2006 में तहसीलदार कसौली और थाना बरोटीवाला के एसएचओ की रिपोर्ट के आधार पर हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा 118 के उल्लंघन का मामला उपायुक्त सोलन के सामने आया। 21 मार्च, 2011 को उपायुक्त ने जमीन और मकान को सरकार के कब्जे में लेने का आदेश दिया।

आदेश को चुनौती देते हुए की अपील

जगमोहन ने आदेश को चुनौती देते हुए मंडलीय आयुक्त के पास अपील दायर की, जो 14 साल तक लंबित रही। जगमोहन का तर्क था कि जमीन की रजिस्ट्री वर्ष 1989 में हुई जबकि वर्ष 1995 में कानून में संशोधन कर बेनामी लेनदेन पर रोक लगाई गई। इसलिए उस पर यह नियम लागू नहीं होता। उसने दावा किया कि वह जन्म से हिमाचल में रह रहा है, इसलिए उस पर कोई पाबंदी नहीं थी। मंडलीय आयुक्त शिमला ने जगमोहन की इन दलीलों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, अपीलकर्ता ने स्वयं माना कि जमीन की वास्तविक कीमत उसी ने दी थी और मकान के पानी व बिजली के कनेक्शन भी उसी के नाम पर थे। यानी उसने पूरी तरह से कानून की जानकारी होते हुए भी बेनामी सौदा किया। हिमाचल का गैरकृषक होने के बावजूद बिना सरकार की अनुमति के जमीन खरीद कर उसने धारा 118 का उल्लंघन किया। निर्णय में कहा कि अब जमीन और उस पर बने मकान को सरकार के कब्जे में लिया जाएगा और जिला प्रशासन इसके लिए प्रक्रिया शुरू करेगा। जमीन को उपायुक्त सोलन की अदालत ने 21 मार्च, 2011 को हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा 118 का उल्लंघन मानते हुए बेदखली के आदेश दिए थे। हालांकि उक्त भूमि का 23 जुलाई, 2013 को इंतकाल प्रदेश सरकार के नाम हो गया था, लेकिन उक्त करोड़ों रुपये की भूमि पर अवैध तौर पर मालिकाना हक जमा कर अधिकांश क्षेत्र में बनाए भवन को किराये पर चढ़ाकर जगमोहन लाखों रुपये की सालाना आय लगातार अर्जित करता रहा। अब मंडलीय आयुक्त शिमला ने अपील को खारिज कर दिया है।

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