



Chaitra Navratri 2025: मां कालरात्रि की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से भय, नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं का नाश हो जाता है। नवरात्रि का सातवां दिन, जिसे महासप्तमी कहा जाता है, मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि को समर्पित है। मां कालरात्रि को अत्यंत शक्तिशाली और दुष्ट संहारक देवी माना जाता है। जब-जब धरती पर अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब देवी कालरात्रि प्रकट होकर असुरों का विनाश करती हैं। उनका स्वरूप भले ही अंधकारमय और विकराल हो, लेकिन वह सद्गुणी भक्तों की रक्षक और कल्याणकारी हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से भय, शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। जो भक्त श्रद्धा और सच्चे मन से उनकी आराधना करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। जीवन में सफलता प्राप्त होती है। इस दिन विशेष पूजा-विधि, भोग और मंत्रों का महत्व होता है, जिससे मां कालरात्रि की कृपा प्राप्त की जा सकती है। आइए, जानते हैं इस दिन की पूजा विधि और महत्व। पौराणिक कथाओं के अनुसार, असुर शुंभ और निशुंभ ने चंड-मुंड और रक्तबीज की मदद से देवताओं को हरा दिया था और तीनों लोकों पर शासन करने लगे थे। इसके बाद इंद्र और अन्य देवताओं ने देवी दुर्गा से प्रार्थना की और तब मां ने उन्हें मारने के लिए देवी चामुंडा का रूप धारण किया, जिसके बाद माता काली ने चंड, मुंड और रक्तबीज का वध किया और फिर से संपूर्ण जगत में शांति की स्थापना की। मां काली देवी दुर्गा का उग्र स्वरूप हैं। वे नकारात्मक ऊर्जा का नाश करने के लिए जानी जाती है। साथ ही वे अपने भक्तों के जीवन के समस्त अंधकार को दूर करती हैं। मां कालरात्र की कथा सुनने व पढ़ने का न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इससे हमारे जीवन की आने वाली चुनौतियों का अंत होता है। ऐसे में चैत्र नवरात्र के इस महत्वपूर्ण दिन में मां कालरात्रि की कथा का पाठ अवश्य करें और उनकी कृपा प्राप्त करें।
मां काली पूजा मंत्र (Chaitra Navratri 2025 Day 7 Puja Mantra)
- ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा।।
- ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं।।
- ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा।।
मां काली का प्रिय भोग (Chaitra Navratri 2025 Day 7 Bhog)
मां काली को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें बहुत पसंद हैं। इसके अलावा उन्हें आप उड़द की दाल और चावल का भोग भी अर्पित कर सकते हैं। कहा जाता है कि मां को उनका प्रिय भोग लगाने से वे साधक को मनचाहा वरदान देती हैं। इसके साथ ही उनकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।