



- हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट में घिरी कांग्रेस सरकार की मुश्किलें कम नहीं हो रहीं
- राज्यसभा के गर्भ से उपजी अस्थिरता में दोनों तरफ से कदम फूंक-फूंक कर रखे जा रहे हैं
- सबसे पहले कांग्रेस सरकार ने बगावत करने वाले छह विधायकों की सदस्यता खत्म की
शिमला: राजनीति के खेल में कोई किसी पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं कर सकता है। हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट में घिरी कांग्रेस सरकार इसका प्रमाण है। अब आगे क्या होगा… ये न तो सत्ता पक्ष को पता है और न ही विपक्ष को। केवल दोनों तरफ से आकलन करते हुए सरकार को बचाने और सरकार को गिराने का काम किया जा रहा है।
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एक बार पंद्रह भाजपा विधायकों का निलंबन झेल चुके विपक्ष को आशंका है कि बहुतम साबित करने के लिए आयोजित होने वाले विधानसभा सत्र में पहले विशेषाधिकार हनन समिति की सिफारिश पर सदन में चर्चा होगी और सात भाजपा विधायकों को उनके आचरण के लिए निलंबित किया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में विधानसभा सचिवालय क्रियाकलापों का केंद्र बिंदु रहेगा।
दोनों तरफ से फूंक-फूंक कर रखे जा रहे कदम
राज्यसभा के गर्भ से उपजी अस्थिरता में दोनों तरफ से कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। सबसे पहले कांग्रेस सरकार ने बगावत करने वाले छह विधायकों की विधानसभा सदस्यता को खत्म करवाया। उसके बाद सरकार ने बगावत के स्वरों को शांत रखने के लिए तुरंत राज्य वित्तायोग में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कैबिनेट रैंक देते हुए ताजपोशी कर डाली। दूसरी तरफ विपक्ष ने बजट सत्र के दौरान भाजपा के पंद्रह विधायकों को निलंबित करने की आशंका जताते हुए राज्यपाल को सूचित किया था और हुआ भी वही। उसके बाद दो दिन पहले विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर ने संदेह व्यक्त किया कि विधानसभा की विशेषाधिकार हनन समिति के माध्यम से सात भाजपा विधायकों को निलंबित किया जा सकता है।
भाजपा के सात विधायकों की बढ़ेगी मुश्किल
यदि ऐसा होता है कि सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करना पड़ता है तो बजट सत्र के दौरान विधानसभा के अधिकारियों के कागजात फेंकने वाले भाजपा के सात विधायकों की मुश्किलें बढ़ती नजर आएंगी। राज्यपाल सत्र बुलाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को कहेंगे।