



नेशनल डेस्क: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वेदिता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है। अब शीर्ष अदालत कल 2 बजे फिर से इस मामले पर सुनवाई करेगा। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने का समय दिया है। इस कानून के खिलाफ 70 से ज्यादा याचिकाएं दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का हनन करता है और सरकार को धार्मिक संपत्तियों पर अनुचित अधिकार देता है।
सुनवाई कर रही है तीन जजों की पीठ
पहले के अपडेट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि वह पहले दो अहम बिंदुओं पर विचार करेंगे। क्या यह मामला सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाना चाहिए या हाईकोर्ट को भेज देना चाहिए ? वकील कौन-कौन से कानूनी मुद्दों पर बहस करना चाहते हैं?
कपिल सिब्बल ने क्या तर्क दिए?
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए ने कहा, पहले वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम सदस्य होते थे, लेकिन अब कानून के अनुसार गैर-मुस्लिम, जैसे हिंदू भी इसके सदस्य हो सकते हैं, जो आर्टिकल 26 के खिलाफ है। अब वक्फ घोषित करने के लिए वक्फ डीड (कागज़ात)अनिवार्य कर दिए गए हैं। सरकार कहती है कि संपत्ति पर विवाद की स्थिति में सरकारी अधिकारी जांच करेंगे, लेकिन यह व्यवस्था असंवैधानिक है और सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देती है। सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया कि क्या सरकार के अधिकारी यह तय करेंगे कि संपत्ति किसकी है? यह 20 करोड़ मुस्लिमों के अधिकारों से जुड़ा मामला है।
सीजेआई ने क्या कहा?
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि “हिंदुओं के मामलों में भी सरकार ने कानून बनाया है, संसद ने मुस्लिमों के लिए भी बनाया। आर्टिकल 26 धर्मनिरपेक्ष है और सभी समुदायों पर लागू होता है।” सुप्रीम कोर्ट खुद फैसला कर सकता है, लेकिन हाईकोर्ट को भी मामले की सुनवाई का अधिकार दिया जा सकता है। कोर्ट ने फिलहाल कानून पर रोक लगाने की कोई सुनवाई नहीं की है।
कौन-कौन सी याचिकाएं दायर की गई हैं?
इस कानून के खिलाफ याचिकाएं दाखिल करने वालों में शामिल हैं:
– AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी
– आप नेता अमानतुल्ला खान
– धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी
– राजद नेता मनोज झा
– ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
– जमीयत-ए-उलमा-ए-हिंद और कई मुस्लिम संगठनों ने मिलकर करीब दो दर्जन से अधिक याचिकाएं दायर की हैं।