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हिमाचल को एफआरए के दायरे से बाहर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार….

लाइव हिमाचल/शिमला: हिमाचल प्रदेश को वन संरक्षण अधिनियम (एफआरए) के दायरे से बाहर करने के लिए प्रदेश सरकार उच्चतम न्यायालय जाएगी। वीरवार को राज्य सचिवालय में मंत्रिमंडलीय उप-समिति की बैठक में निर्णय लिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन गोदावर्मन मामले में हिमाचल अपना भी पक्ष रखेगा। राजस्व एवं बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी की अध्यक्षता में हुई बैठक में लंबे समय से वन भूमि का उपयोग कर रहे छोटे किसानों और भूमिहीन लोगों को राहत देने का फैसला लिया गया। बैठक के बाद जगत सिंह नेगी ने बताया कि लघु एवं सीमांत किसानों और भूमिहीन परिवारों को राहत प्रदान करने के लिए मंत्रिमंडलीय उप-समिति गठित की गई है। बैठक में छोटे व सीमांत किसानों और भूमिहीन परिवारों के लिए कानूनी पहलुओं पर विचार-विमर्श किया गया। पूर्व में भी विधानसभा सत्र के दौरान एफसीए 1980 में उचित संशोधन के लिए सर्वसम्मति से प्रस्ताव परित कर केंद्र सरकार को भेजा गया था, ताकि छोटे किसानों व भूमिहीन परिवारों को राहत प्रदान की जा सके। राजस्व मंत्री ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन गोदावर्मन मामले में हिमाचल सरकार भी अपना पक्ष रखकर 1952 की अधिसूचना को फॉरेस्ट एक्ट 1927 के संदर्भ में लागू करने के लिए याचिका दायर करेगी। हिमाचल में वन भूमि का बंदोबस्त करवाया जाएगा। पांच बीघा से कम वन भूमि वालों को राहत देने और आपदा में जिनके बगीचे-खेत बह गए और घर ढह गए थे, उन्हें तबादले में भूमि देना सरकार की प्राथमिकता है। उच्च न्यायालय के आदेशों पर वन भूमि में अतिक्रमण को लेकर प्रदेश में चल रहे ताजा मामलों पर भी बैठक में चर्चा हुई। इन मामलों में लोग कई पुश्तों से वन भूमि का उपयोग कर जीवन निर्वाह कर रहे हैं। राजस्व मंत्री जगत नेगी ने बताया कि 2002 में भाजपा सरकार के समय सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के कब्जे नियमित करने के लिए लोगों से शपथपत्र लिए गए थे। करीब डेढ़ लाख लोगों ने शपथ पत्र दिए। पॉलिसी तो बनी नहीं लेकिन शपथ पत्र देने वाले पुख्ता अवैध कब्जाधारी बन गए। इसके अलावा हजारों लोग लंबे समय से सरकारी भूमि पर खेती कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। राजस्व मंत्री जगत नेगी ने बताया कि 2002 में भाजपा सरकार के समय सरकारी भूमि पर अतिक्रमण करने वालों के कब्जे नियमित करने के लिए लोगों से शपथपत्र लिए गए थे। करीब डेढ़ लाख लोगों ने शपथ पत्र दिए। पॉलिसी तो बनी नहीं लेकिन शपथ पत्र देने वाले पुख्ता अवैध कब्जाधारी बन गए। इसके अलावा हजारों लोग लंबे समय से सरकारी भूमि पर खेती कर अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं। 

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