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गर्भ में बच्‍चे को लेकर प्रेमानंद जी ने कह दी ऐसी बात, सुनकर कांप जाएगा कलेजा, कई दिन नहीं आएगी नींद

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Premanand ji Maharaj: वृंदावन के संत प्रेमानंद जी की बातें अक्‍सर आंखें खोल देती हैं लेकिन इस बार गर्भ में मानव शरीर के निर्माण को लेकर उन्‍होंने ऐसी बात कही है, जिसे सुनकर आप कई दिनों तक सो नहीं पाएंगे. आइए जानते हैं, ऐसा उन्‍होंने क्‍या कहा है..वृंदावन के संत स्‍वामी प्रेमानंद महाराज आज युवाओं से लेकर सामान्‍य ग्रहस्‍थों, संत, महात्‍माओं तक के प्रेरणास्‍त्रोत बन गए हैं. उनकी बातें लोगों को भा रही हैं, लोग उनके बताए रास्‍तों पर चल रहे हैं. साफ-साफ कहने वाले प्रेमानंद जी कई बार ऐसी बातें बोल देते हैं, जिन्‍हें सुनकर लोग उनके दीवाने हो जाते हैं लेकिन हाल ही में गर्भ में बच्‍चे को लेकर उन्‍होंने धर्मग्रन्‍थों में लिखी ऐसी बात कही है कि अगर आप सुन लेंगे तो कई दिनों तक आपको नींद नहीं आएगी. गर्भ में आए जिस बच्‍चे की एक हरकत पर माता-पिता नाच उठते हैं और उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता, वह बच्‍चा असल में गर्भ में कैसे विकसित होता है और कैसा महसूस करता है, इस पर प्रेमानंद जी की ये बात किसी को भी विचलित कर सकती है. आइए जानते हैं, ऐसा उन्‍होंने क्‍या बोल दिया है कि सोशल मीडिया पर लोग इसे सुनकर परेशान हो गए हैं। प्रेमानंद सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में बताते हैं, मानव शरीर कैसे बनता है? कृष्‍ण कहते हैं कि अन्‍य योनियों को भोगकर जब जीव को मनुष्‍य शरीर मिलता है तो पहले वह वर्षा के द्वारा अन्‍न में पहुंचता है और अन्‍न के द्वारा माता-पिता के उदर में पहुंचता है. इसके बाद पिता का वीर्य और माता का रज, दोनों के संयोग से उसकी रचना होती है. पांच रात्रि में यह बुदबुदा बनता है. 10 रात्रि में एक बेर की आ‍कृति जैसा होता है. 10 दिन के बाद धीरे-धीरे मांसपेशियां बढ़ना शुरू हो जाती हैं. एक महीने में यह अंडे के जैसा रूप ले लेता है. उसके बाद उसकी सिर की आकृति बनती है. दो महीने के बाद हाथ पांव के अंग बनना शुरू होते हैं. तीसरे महीने में नख, रोम, त्‍वचा, हड्डी और स्‍त्री-पुरुष का चिह्न बन जाता है यानि गर्भस्थ शिशु बालक है या बालिका. चार महीने में मांस आदि धातुएं, नस, नाड़ी, और शरीर में रक्‍त संचालन प्रारंभ हो जाता है। के उदर में मल-मूत्र के गड्ढे में पड़ा हुआ मुझे जठराग्नि जला रही है, कीड़े नोच रहे हैं. दुर्गंधयुक्‍त इस जगह से निकलने की इच्‍छा करते हुए दिन और एक एक मिनट गिन रहा हूं कि कब यहां से बाहर निकलूं. प्रभु मेरी प्रार्थना है कि बस इस बार यहां से बाहर निकाल दो. आठवें और नौवें महीने में भारी विचलित वह जीव प्रार्थना कर ही रहा था कि प्रसव वायु उसे धक्‍का देती है और वह मां के घृणित द्वार से बाहर आ जाता है। लेकिन जैसे ही बच्‍चा पैदा होता है, उसका ज्ञान अपहरण हो जाता है, वो सोचता है कि ये कहां आ गया, जो ज्ञान था वो कहां गया, भगवान कहां गए और वह बच्‍चा रो रहा है.. लेकिन फिर प्रपंच शुरू और फिर वही बच्‍चा, जवान, ब्‍याह, परिवार, बुढ़ापा और फिर गर्भ, कष्‍ट, जन्‍म वही प्रक्रिया.

आखिर में ये बोले प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज आखिर में कहते हैं कि देख लीजिए इसी गर्भ में रहकर आप-हम सभी आए हैं. इन्‍हीं द्वारों से निकले और फिर इन्‍हीं द्वारों में आसक्‍त होकर फिर इन्‍हीं द्वारों में जाने का विधान बना रहे हैं. इसलिए इस जीवन में भगवान का नाम जप कीजिए कि बुद्धि शुद्ध करे और इस चक्र से मुक्ति मिले।

 

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