



शिमला : हिमाचल प्रदेश में सुक्खू सरकार एक और संकट में घिरती नजर आ रही है. राज्य सरकार रिसोर्स मोबेलाइजेशन की बात कर रही है, लेकिन इस बीच सुक्खू सरकार के सामने एक और मुसीबत खड़ी नजर आ रही है. प्रदेश में कई उद्योग पलायन करने की तैयारी में हैं. वजह है बिजली का मंहगा होना. बीते साल सुक्खू सरकार ने राज्य बिजली बोर्ड की खस्ता हालत को सुधारने को लेकर इंडस्ट्री के लिए इलैक्ट्रिसिटी ड्यूटी में इजाफा किया था. विद्युत शुल्क को 11 से बढाकर 19 फीसदी किया गया था. हालांकि, अलग-अलग उद्योगों के लिए दरें अलग-अलग हैं. लेकिन इससे उद्योग जगत में नाराजगी है. अब मॉनसून सत्र से बिजली पर मिल्क सेस लगने से भी कई उद्योग नाराज चल रहे हैं. जानकारी के अनुसार उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने विद्युत शुल्क में करीब 6 फीसदी कम करने की पैरवी की है. वहीं, दूसरी ओर बिजली बोर्ड प्रबंधन ने भी अपनी बात सरकार के समक्ष रखी है और बोर्ड की ओर से तय की गई दरें भी बताई हैं. पुख्ता जानकारी के अनुसार राज्य सरकार अब पड़ोसी राज्यों में उद्योगों से वसूले जा रहे विद्युत शुल्क का अध्ययन करने के बाद ही इस पर फैसला करेगी, प्रदेश हित्त में पड़ोसी राज्यों से कम शुल्क लेने पर सहमति बन सकती है। जानकारी के अनुसार उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने विद्युत शुल्क में करीब 6 फीसदी कम करने की पैरवी की है. वहीं, दूसरी ओर बिजली बोर्ड प्रबंधन ने भी अपनी बात सरकार के समक्ष रखी है और बोर्ड की ओर से तय की गई दरें भी बताई हैं. पुख्ता जानकारी के अनुसार राज्य सरकार अब पड़ोसी राज्यों में उद्योगों से वसूले जा रहे विद्युत शुल्क का अध्ययन करने के बाद ही इस पर फैसला करेगी, प्रदेश हित्त में पड़ोसी राज्यों से कम शुल्क लेने पर सहमति बन सकती है. जानकारी ये भी है कि जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में उद्योगों के लिए हिमाचल से अपेक्षा ज्यादा रियायतें दी जा रही हैं, जिसके चलते प्रदेश में स्थापित उद्योग पड़ोसी राज्यों का रूख कर सकते हैं.
उद्योग जगत क्या मांग कर रहे हैं
बीते साल तय की गई दरों के तहत हाई टेंशन के तहत आने वाले उद्योग के लिए बिजली शुल्क 11 से बढ़ाकर 19 प्रतिशत कर दिया गया था, एक्सट्रीम हाई टेंशन के तहत 13 से बढ़ाकर 19 प्रतिशत कर दिया गया था, छोटे और मध्यम उद्योगों पर शुल्क 17 प्रतिशत तक बढ़ाया गया था, जबकि सीमेंट संयंत्रों पर शुल्क 17 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया था, उद्योग जगत बीते साल से ही इसको कम करने की मांग कर रहे हैं. उधर, आपदा और मंदी से जूझ रहे उद्योग राज्य सरकार से रियायत की उम्मीद लगाए बैठी है, जबकि राज्य सरकार उद्योगों से अधिक राजस्व चाहती है।