



राधाकृष्ण के प्रेम की कई सारी कहानियां हैं। जिन्हें पढ़कर या सुनकर उनके प्रेम की पराकाष्ठा का अहसास होता है। लेकिन कुछ ऐसे भी किस्से हैं जिन्हें जानकर हैरानी होती है। कृष्ण के सिर पर सजने वाला मोरपंख भी ऐसे ही एक किस्से का हिस्सा बना और उसका परिणाम यह रहा है कि श्रीकृष्ण ने कलिकाल तक मोरपंख को अपने शीश पर लगाने का वरदान दे दिया। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं…
जब भी हमारे मुख से कृष्णा जी जिक्र होता है तो उनकी छवि में सबसे पहले मोर पंख सबसे पहले ख्याल में आता है !
कहा जाता है की एक मोर ही ऐसा प्राणी होता है जो अपने पुरे जीवन में ब्रह्मचारी का पालन करता है ! क्या आपको पता है फिर मोर मोरनी का सम्बन्ध कैसे होता होगा ?
मोरनी, मोर के आंसू पी कर ही गर्भीत हो जाती है ऐसा सिर्फ मोर पक्षी के अलावा किसी प्राणी के बारे में नहीं सुना गया और ना ही सुना जायेगा !
इस वजह से ही कृष्णा भगवान मोर के पवित्र पंख को अपने मुकुट पर सजाते है ! इस वजह से वो मोरमुकुटधारी के नाम से भी जाने जाते है !!
क्यों पसंद है कृष्ण को मोरपंख
श्यामसुन्दर मोर पंख क्यों लगाते है…?
जब भी भगवान कृष्णा का नाम आता है हमारे सामने उनकी या तो बाल छवि या फिर युवा छवि छा जाती है | हर छवि में उनके सिर पर शोभा बढाता मोरपंख नजर आता है | कृष्णा को यह मोरपंख इतना पसंद है की इसे हमेशा अपने श्रंगार में साथ रखते है |
उनके मुकुट में हमेशा मोर का ही पंख क्यों लगाया जाता है ?
कृष्ण के मुकुट पर मोर पंख क्यों ?
भगवान श्रीकृष्ण को मोर मुकुट धारी कहा जाता है क्योंकि वे अपने मुकुट पर मोर पंख धारण करते थे। मोरपंख धारण करने के पांच कारण बताए जाते हैं l
1. कहा जाता है कि बचपन से ही माता यशोदा अपने लल्ला के सर इस मोर पंख को सजाती थीं। बड़े होने के बाद कृष्ण खुद भी इसे अपने सर पर सजाते रहे हैं, जिसका कारण है कि स्वयं भगवान भी मोर की ही तरह पवित्र हैं l भले ही उन्हें रास रचैया कहा जाता है, लेकिन वो इन सब से बहुत दूर रहे हैं l कहते हैं कि एक बार श्रीकृष्ण राधा के साथ नृत्य कर रहे थे तभी उनके साथ ही झूमकर नृत्य कर रहे एक मोर का पंख भूमि पर गिर गया तो प्रभु श्रीकृष्ण ने उठाकर उसे अपने सिर पर धारण कर लिया। जब राधाजी ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि इन मोरों के नाचने में उन्हें राधाजी का प्रेम दिखता है। महारास लीला के समय राधा ने उन्हें वैजयंती माला पहनायी थी। वैजयंती माला के साथ ही मोर पंख धारण करने की एक बड़ी वजह राधा से उनका अटूट प्रेम है।
2. मोरपंख में सभी रंग समहाहित है। भगवान श्रीकृष्ण का जीवन कभी एक जैसा नहीं रहा। उनके जीवन में सुख और दुख के अलावा कई अन्य तरह के भाव भी थे। कृष्ण अपने भक्तो को ऐसे रंगों को देखकर यही सन्देश देते है जीवन ही इस तरह सभी रंगों से भरा हुआ है कभी सुख, कभी दुख।
3. कई ज्योतिष विद्वान मानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने यह मोरपंख इसलिए धारण किया था क्योंकि उनकी कुंडली में काल सर्प दोष था। कालसर्प योग के सारे लक्षण कृष्ण के जीवन में नजर आते हैं। जेल में जन्म होना इसके बाद माता-पिता से दूर रहना कालसर्प का प्रभाव है। कालसर्प का एक प्रभाव यह भी होता है कि व्यक्ति 36 वर्ष के बाद सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त करता है लेकिन उसका उपभोग नहीं कर पाता है। कृष्ण ने भी 36 वर्ष के बाद सभी प्रकार का ऐश्वर्य हासिल कर लिया लेकिन कभी उनका सुख नहीं मिला। मोर पंख धारण करने से यह दोष दूर हो जाता है, लेकिन जो जगत पालक है उसे किसी काल सर्प दोष का डर नहीं l
4. कई लोग यह मानते हैं कि मोर ब्रह्मचर्य का प्रतीक है। मोर पूरे जीवन एक ही मोरनी के संग रहता है। मोरनी का गर्भ धारण मोर के आंसुओ को पीकर होता है। अतः इसीलिए इतने पवित्र पक्षी के पंख को स्वयं भगवान श्री कृष्ण अपने मष्तक पर धारण करते हैं।
5. भगवान कृष्णा मित्र और शत्रु के लिए समान भावना रखते है इसके पीछे भी मोरपंख का उद्दारण देखकर हम यह कह सकते है | कृष्णा के भाई थे शेषनाग के अवतार बलराम और नागो के दुश्मन होते है मोर | अत: मोरपंख सर पर लगाके कृष्णा का यह सभी को सन्देश है की वो सबके लिए समभाव रखते है |