अंग्रेजी में एक कहावत है Eternal Vigilance is the price of liberty अर्थात स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सदैव चौकन्ना रहना पड़ता है। यही कारण है, हमारी सेनाएं, स्वतंत्रता, जानमाल और हमारे राष्ट्र की एक-एक इंच भूमि के लिए चौबीसों घंटे सजग, सचेत व सतर्क रहती हैं। 26 जुलाई को पूरा भारत “विजय दिवस” को बड़े धूमधाम से मना रहा है। भारत के वीर सैनिकों ने आज के ही दिन विजय हासिल की थी। कारगिल की लड़ाई में प्रदेश के हमीरपुर के भी कई सैनिकों ने भाग लिया था और कई सैनिक शहीद भी हो गए थे। उस समय मैं हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री था। लेख में कारगिल की उन अनछुई बातों का जिक्र करेंगे, जिन्हें शायद बहुत कम लोग जानते होंगे।

कारगिल युद्ध के दौरान हिमाचल प्रदेश में हमारी सरकार थी। नरेंद्र मोदी हिमाचल के प्रभारी थे। हमने आपस में विचार-विमर्श करने के बाद सैनिकों के लिए के खाद्य सामग्री (पका भोजन) और दैनिक उपयोग के वस्त्र आदि लिए और हैलीकॉप्टर भर कर 4 जुलाई को श्रीनगर पहुंच गए। 5 जुलाई प्रातः काल हम श्रीनगर से कारगिल के लिए निकले। जब हम कारगिल में लैंड कर रहे थे, तब भी पाकिस्तान की तरफ से गोलाबारी हो रही थी। सेना के वरिष्ठ अधिकारी ब्रिगेडियर नन्द्राजोग के नेतृत्व में हमें जानकारियां मिल रही थी।
भूमिगत मोर्चे में मौजूद सैनिकों को सामान बांटा, बाकि सामान सैनिकों को दे दिया, ताकि मोर्चे पर लड़ाई लड़ रहे फौजियों तक भी इसे पहुंचाया जा सके। सांयकाल श्रीनगर वापिस पहुंचकर सैनिक अस्पताल गए, घायल सैनिकों का कुशलक्षेम पूछा और उन्हें सामान बांटा। एक जवान बिस्तर पर लेटा था, जिसने सामान नहीं पकड़ा और कहा कि सामने साइड में रखे टेबल पर रख दो। यह देखकर उन्हें लगा कि शायद घायल होने के कारण यह नाराज होगा।

ज्यों ही हम मुड़े तो एक डॉक्टर दौड़ा-दौड़ा वहां पहुंचा और बताया कि माइन ब्लास्ट में इस जवान के दोनों हाथ व पैर उड़ गए थे। हम वापिस मुड़े और उसके सिर पर हाथ रखकर पूछा, ‘‘बहुत दर्द होता होगा’’ उसने कहा ‘‘पहले था, कल शाम से नहीं हो रहा है’’। हमने पूछा क्या कोई दर्द निवारक दवाई ली या टीका लगा? उसने कहा ‘‘नहीं, कल शाम (4 जुलाई को) टाइगर हिल वापस ले लिया मेरा दर्द खत्म हो गया,’’ यह सुनकर हम सब भावुक हो गए, देश भक्ति के इस जज्बे को सलाम।
हिमाचल के 52 जवान शहीद हुए थे, मैं सभी के घर गया, हर शहीद परिवार की दिल को छू लेने वाली बातें सुनीं। पालमपुर में कारगिल युद्ध के प्रथम शहीद कै. सौरभ कालिया की माता अपने पास बैठी शहीद परमवीर चक्र कै. विक्रम बत्रा की माता को ढांढस बंधा रही थीं। एक मां जिसने अपना बेटा खोया था, वो दूसरी मां, जिसने अभी-अभी अपना बेटा खोया था, उसे सांत्वना दे रही थीं। बिलासपुर के वीर सैनिक संजय कुमार को परमवीर चक्र मिला था। उसी जिले में एक जवान मंगल सिंह भी शहीद हुआ था। शहीद मंगल सिंह की मां कौशल्या देवी ने डेढ़ किलोमीटर तक शहीद बेटे मंगल सिंह की अर्थी को कंधा दिया।
पालमपुर के लम्बापट गांव के हवलदार रोशन लाल का जवान बेटा राकेश कुमार शादी के 15 दिन के अन्दर ही शहीद हो गया था। रोशन लाल को पछतावा था कि 1965 के युद्ध में जिस मोर्चे पर वह तैनात था, उसी मोर्चे पर उसका बेटा 1999 में शहीद हो गया। हमीरपुर जिले के बमसन चुनाव क्षेत्र के शहीद राज कुमार के पिता हवलदार खजान सिंह भी पूर्व सैनिक थे। जब मैं उनके घर पहुंचा तो इससे पहले कि मैं कुछ कहता, उन्होंने कहा ‘‘धूमल साहब, बेटे तो पैदा ही इसलिए किए जाते हैं कि पढें, लिखें और जवान होकर फौज में भर्ती होकर देश की रक्षा करें और जरूरत हो तो अपना बलिदान दें।
आप दिल्ली जा रहे हैं तो वाजपेयी जी को कहना कि सैनिकों की कमी हो तो 82 वर्ष का हवलदार खजान सिंह आज भी हथियार उठाकर देश की रक्षा करने के लिए तैयार हैं।’’ यह शब्द सुनकर वहां उपस्थित हर कोई उनकी भावना की प्रशंसा करने लगा। बाद में जब मैं अटल जी को मिला और उन्हें यह सारी घटनाएं सुनाई तो वे भी बड़े भावुक हुए।
जब तक भारत मां के ऐसे वीर सपूत देश के लिए हर बलिदान देने के लिए तैयार होंगे, तब तक यह देश सुरक्षित है। मातृभूमि के लिए समर्पण की भावना हर नागरिक में हो, शहीदों का सम्मान पूरा राष्ट्र करें तो स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित की जा सकती हैं।
लेखक: प्रोफेसर प्रेम कुमार धूमल )
(हिमाचल प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं)