



लाइव हिमाचल/शिमला: युवा महिलाओं में कैंसर के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। महिलाओं के लिए, स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। BRCA1 और BRCA2 जैसे जीनों में वंशानुगत उत्परिवर्तन इस बीमारी के विकसित होने की संभावना को बहुत बढ़ा सकते हैं, खासकर जब किसी करीबी रिश्तेदार को कम उम्र में इसका पता चला हो या जब परिवार के कई सदस्य इससे प्रभावित हुए हों। आईजीएमसी शिमला के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग और कैंसर अस्पताल की संयुक्त रिसर्च यूनिट की ओर से शहरी व अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्तन कैंसर के कारणों को लेकर एक अध्ययन में हुआ है। अध्ययन में प्रदेशभर की 1000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया। अध्ययन में सामने आया है कि राजधानी के टर्शरी कैंसर सेंटर में बीते एक साल के भीतर 600 से अधिक महिलाएं स्तन कैंसर के इलाज के लिए पहुंचीं। इनमें लगभग 30 प्रतिशत महिलाएं 40 वर्ष से कम उम्र की थीं। यह आंकड़ा चिकित्सकों को चिंतित कर रहा है। कैंसर अस्पताल के ऑन्कोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. मनीष का कहना है कि कम उम्र की महिलाएं स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षणों को अकसर नजरअंदाज कर देती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि जब तक वह अस्पताल पहुंचती हैं, तब तक कैंसर काफी आगे बढ़ चुका होता है। समय पर जांच, स्क्रीनिंग और जागरुकता ही इससे बचाव के प्रमुख उपाय हैं। कई मामले सामने आए हैं, जहां जागरुकता की कमी के चलते बीमारी एडवांस स्टेज में पकड़ी गई। डॉक्टरों का कहना है कि महिलाओं को मासिक स्व-परीक्षण की आदत डालनी चाहिए। 30 की उम्र के बाद हर साल ब्रेस्ट स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। शोध में यह भी सामने आया कि कुपोषण, एनीमिया और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी बीमारी को फैलने का मौका दे रही है। रिपोर्ट में पाया गया कि कैंसर से पीड़ित अधिकांश महिलाओं की दिनचर्या असंतुलित थी। अत्यधिक मानसिक तनाव, नींद की कमी, प्रोसेस्ड भोजन और शारीरिक गतिविधियों की कमी जैसे कारकों ने रोग की संभावना को और बढ़ाया। इसके साथ ही महिलाओं में मोटापा और हार्मोनल असंतुलन, विशेष रूप से अनियंत्रित शुगर लेवल भी प्रमुख कारणों में से एक रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि स्तन कैंसर अब केवल अधेड़ उम्र की बीमारी नहीं रही, बल्कि कम उम्र की महिलाएं भी इसकी चपेट में आ रही हैं।