



शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि कर्मचारी भविष्य निधि योगदान को कर्मचारी के वेतन से काटने के बाद भी उसे वैधानिक निधि में जमा नहीं करना एक गंभीर अपराध है। न्यायाधीश राकेश कैंथला की एकलपीठ ने कहा कि इसमें शामिल व्यक्ति पर आपराधिक कार्रवाई की जा सकती है, भले ही वह सीधे तौर पर मालिक न हो बल्कि कब्जेदार की श्रेणी में आता हो। अदालत ने पाया कि लीज के माध्यम से कारखाने का प्रबंधन याचिकाकर्ता को सौंपा गया था। एक कब्जेदार होने के नाते ईपीएफ योगदान काटने और उसे वैधानिक कोष में जमा करने के लिए बाध्य था। अदालत ने कहा कि एफआईआर में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया में आईपीसी की धारा 406 की सार को पूरा करते हैं, और ऐसे में एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता। याची ने हाईकोर्ट में इसे लेकर एक याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि धर्मशाला पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ जो एफआईआर दायर की गई है उसे रद्द कर दिया जाए, लेकिन अदालत ने एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत दर्ज की गई है। याचिकाकर्ता पर कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) योगदान को कर्मचारी के वेतन से काटकर भी वैधानिक कोष में जमा न करने के आरोप लगाए गए हैं। बता दें कि सिद्धबाड़ी कोऑपरेटिव टी फैक्ट्री, जो कर्मचारी भविष्य निधि 1952 के तहत आती है। उस पर आरोप है कि उसने मार्च 2016 से जुलाई 2017 तक कर्मचारियों के वेतन से ईपीएफ योगदान काटा, लेकिन उसे वैधानिक कोष में जमा नहीं किया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह कारखाने का मालिक नहीं था और उसने इसे केवल लीज पर लिया था। उसने यह भी दावा किया कि कर्मचारी उसकी ओर से नियोजित नहीं थे, सिद्धबाड़ी कोऑपरेटिव सोसाइटी की ओर से नियुक्त किए गए थे, इसलिए वह ईपीएफ योगदान जमा करने के लिए उत्तरदायी नहीं था। अदालत ने याचिका को रद्द करते हुए यह फैसला पारित किया है।