



नेशनल डेस्क: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को तुर्की की कंपनी सेलेबी एयरपोर्ट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर की गई याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कंपनी ने नागरिक उड्डयन सुरक्षा एजेंसी बीसीएएस द्वारा उसकी सुरक्षा मंजूरी रद्द करने के फैसले को चुनौती दी थी, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर आधारित था। इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और फिर आदेश सुरक्षित रख लिया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि वह अगले दिन तक अपनी लिखित दलीलें पेश करेंगे।
सेलेबी का पक्ष
सेलेबी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने अदालत में तर्क दिया कि विमानन सुरक्षा नियम 2013 का नियम 12 कानूनी रूप से बाध्यकारी है, जब तक संसद इसे बदलने का निर्णय न ले। उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा संबंधित नियमों का पालन किया जाना चाहिए ताकि सरकार के मनमाने फैसलों के लिए कोई जगह न हो।
रोहतगी ने यह भी बताया कि इस मामले में उचित सुनवाई नहीं की गई, और सेलेबी को बिना किसी पूर्व सूचना के सुरक्षा मंजूरी रद्द कर दी गई। उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि जब तक कोई ठोस आधार न हो, सरकार को सुरक्षा मंजूरी रद्द करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले से सेलेबी का देशभर में कई एयरपोर्टों के साथ किया गया अनुबंध रद्द हो गया, जिससे कंपनी के व्यापार पर बुरा असर पड़ा है। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा के लिए कुछ निर्णयों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे राष्ट्रीय हितों का उल्लंघन हो सकता है। मेहता ने यह भी बताया कि सेलेबी को एयरपोर्ट सुरक्षा में संवेदनशील डेटा तक पहुंच मिलती थी, और इसके संचालन में खुफिया जानकारी के आधार पर कुछ चिंताएं उठी थीं। सेलेबी ने पिछले 17 सालों से भारत में कार्य किया है और इसके पास 10,000 से अधिक कर्मचारी हैं। कंपनी ने 2022 में पांच साल के लिए सुरक्षा मंजूरी प्राप्त की थी, लेकिन उसे अचानक बिना किसी चेतावनी के रद्द कर दिया गया, जिससे कंपनी के संचालन में रुकावट आई है।
सरकार का बयान
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने कहा कि सरकार ने एयरपोर्ट की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लिया और इसके बाद कर्मचारियों की सुरक्षा और एयरपोर्ट संचालन को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। यह मामला सुरक्षा, न्यायिक निष्पक्षता और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाने का है। अब दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर अंतिम फैसला सुरक्षित रखा है।