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हिमाचल के पूर्व परिवहन मंत्री का निधन:वजीर केवल सिंह पठानिया लंबे समय से चल रहे थे बीमार; आज पैतृक गांव में अंतिम संस्कार

कांगड़ा : अमर शहीद वजीर राम सिंह पठानिया के वंशज एवं पूर्व परिवहन राज्य मंत्री केवल सिंह पठानिया का बुधवार देर रात नूरपुर अस्पताल में निधन हो गया। 88 वर्षीय केवल सिंह पठानिया पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे। बुधवार रात को उनकी तबीयत अचानक ज्यादा खराब हो गई। उनके स्वजन उन्हें उपचार के लिए नूरपुर अस्पताल ले गए, लेकिन इस दौरान उनका निधन हो गया।

आज होगा अंतिम संस्कार

स्व. केवल सिंह पठानिया 1972 में नूरपुर से निर्दलीय व 1990 में जनता दल से विधायक चुने गए थे। उन्होंने इन दोनों चुनावों में दिग्गज कांग्रेस नेता स्व. सत महाजन को पराजित किया था। 1994 में उन्हें कांग्रेस पार्टी ने ज्वालामुखी से प्रत्याशी बनाया व वहां से चुनाव जीतने के बाद वह राजा वीरभद्र सिंह के मंत्रिमंडल में परिवहन राज्य मंत्री बने। उनकी गिनती हिमाचल प्रदेश के इमानदार व सादे आदमी के रूप में होती रही है। वसा बजीरां में आज उनका अंतिम संस्कार होगा। 1972 में पठानिया ने नूरपुर क्षेत्र से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे। 1990 में वीरभद्र सिंह की सरकार में ज्वालामुखी से दूसरी बार विधायक बने। तब वह वीरभद्र सरकार में परिवहन मंत्री बनाए गए।

1937 में जन्मे केवल सिंह पठानिया ने 2 बार विधायक और 1 बार कैबिनेट मंत्री बने। उनका राजनीतिक सफर संघर्ष और उपलब्धियों से भरा रहा। कांग्रेस परिवार से होने के बावजूद, आजाद और अन्य दलों से चुनाव लड़े। पूर्व मंत्री केवल पठानिया 1968 में पहली बार ब्लॉक समिति के अध्यक्ष चुने गए।

1972 में उन्होंने आजाद उम्मीदवार के रूप में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। तब उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता सत महाजन को हराया। हालांकि, कांग्रेस ने उन्हें पार्टी में शामिल नहीं किया, क्योंकि सत महाजन प्रदेशाध्यक्ष बन चुके थे।

1985 में वीरभद्र सिंह के कहने पर चुनाव नहीं लड़ा

1977 में जनता पार्टी और 1982 में आजाद प्रत्याशी के तौर पर वह सत महाजन से चुनाव हार गए। 1985 में वीरभद्र सिंह के कहने पर उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। लेकिन 1989 में कांग्रेस छोड़कर जनता दल के झंडे तले चुनाव लड़ा और सत महाजन को हराया।

2007 में बसपा से भी चुनाव लड़ा

1993 में जनता दल का कांग्रेस में विलय हुआ, जिसके बाद पठानिया ने ज्वालामुखी से चुनाव जीता और कांग्रेस सरकार में परिवहन मंत्री बने। 1998 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2003 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा और 2007 में बसपा के झंडे तले चुनाव लड़ा।

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