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हरियाणा के साथ हो सकते हैं हिमाचल में खाली तीन सीटों पर उपचुनाव

शिमला: हिमाचल प्रदेश में खाली हुई तीन और विधानसभा सीटों पर उपचुनाव अब हरियाणा में होने वाले चुनाव के साथ हो सकते हैं। हरियाणा में विधानसभा चुनाव अक्तूबर- नवंबर में  हो जाएंगे। राज्य विधानसभा सचिवालय ने प्रदेश में तीन सीटें देहरा, हमीरपुर और नालागढ़ के रिक्त होने की अधिसूचना सोमवार को जारी कर दी।   इसकी सूचना भारतीय निर्वाचन आयोग को जाएगी तो सांविधानिक प्रावधान के अनुसार छह महीने के भीतर उपचुनाव करवाने जरूरी होंगे। चार-पांच महीने बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं तो भारतीय निर्वाचन आयोग स्वाभाविक रूप से पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ इन उपचुनाव को करवा सकता है।  एक रणनीति के तहत मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व की वर्तमान सरकार तीन और उपचुनाव को आगे टलवाने में कामयाब हो गई। इससे भाजपा को भी कांग्रेस सरकार पर घात करना एकदम आसान नहीं होगा। निर्दलीय विधायक देहरा से होशियार सिंह, हमीरपुर से आशीष शर्मा और नालागढ़ से केएल ठाकुर लगातार इस्तीफे मंजूर करवाने के लिए दबाव बनाते रहे। वे बाद में हाईकोर्ट तक चले गए। तीनों निर्दलियों ने इस्तीफा देने के दूसरे दिन ही भाजपा को भी ज्वाइन कर लिया, मगर कांग्रेस विधायकों ने निर्दलियों के दल-बदलकर भाजपा में जाने की बात पकड़कर एक याचिका विधानसभा अध्यक्ष के पास दायर कर ली और आरोप लगाया कि इन्होंने यह इस्तीफे दबाव और प्रलोभन में आकर दिए हैं। इन पर दल-बदल कानून के तहत कार्रवाई की भी मांग की। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इसी याचिका पर जांच बैठाई और इसमें सुनवाइयां रखीं। इस याचिका पर सुनवाई के बीच मामला आगे ही खिंचता गया और विधानसभा चुनाव के परिणाम आने से एक दिन पहले मंगलवार को इस्तीफे मंजूर कर लिए गए। इसी के साथ कांग्रेस की यह याचिका बेशक निष्फल हो गई, मगर सुक्खू सरकार की इस्तीफे आगे टलवाने की रणनीति सिरे चढ़ गई। छह सीटों धर्मशाला, सुजानपुर, बड़सर, गगरेट, कुटलैहड़ और लाहौल स्पीति में विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं, जिनके नतीजे मंगलवार को आ रहे हैं। एक ओर इन नतीजों से विधानसभा का नया आकार तय होगा तो अगले उपचुनाव से अगला स्वरूप निश्चित होगा। अब भाजपा छह सीटें भी जीत जाए तो भी अगले उपचुनाव तक संख्या बल में मजबूत रहेगी कांग्रेस
तीन निर्दलियों की सीटें खाली होने के बाद छह विधानसभा सीटों के उपचुनाव के मंगलवार को आ रहे नतीजों में भाजपा छहों सीटें भी जीत जाती है तो भी सरकार पर फिलहाल कोई संकट नहीं होगा। नौ सीटों के खाली होने पर कांग्रेस का संख्याबल जहां 34 है तो उस स्थिति में भाजपा का 25 से बढ़कर 31 ही होगा। यानी इस संख्याबल में फिर भी कांग्रेस ही बहुमत में होगी। हालांकि कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि उपचुनाव में भाजपा की रणनीति सफल नहीं होगी। कांग्रेस उपचुनाव भी जीत रही है, जबकि भाजपा खुद की जीत पर आश्वस्त है।

निर्दलियों को टिकट दिए तो तीनों सीटों पर अपनों को मनाना भाजपा के लिए चुनौती
अगर नालागढ़ से भाजपा पंद्रह महीने पहले निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बने केएल ठाकुर को टिकट देती है तो यहां पर उस वक्त भाजपा प्रत्याशी रहे लखविंद्र राणा को मनाना बड़ी चुनौती होगा। केएल ठाकुर 44.51% मत लेकर उस समय विजयी हुए थे तो दूसरे स्थान पर 26.85% वोट लेकर हरदीप सिंह बावा रहे।   23.00% वोट लेकर लखविंद्र राणा तीसरे स्थान पर रहे। इसी तरह देहरा में भाजपा के प्रत्याशी रहे पूर्व मंत्री रमेश धवाला को मनाना होगा और पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि को भी विश्वास में लेना होगा, जिनकी देहरा परंपरागत सीट रही है। यहां पर होशियार सिंह 37.96% वोट लेकर चुनाव जीते, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. राजेश शर्मा को 31.56% वोट पड़े। धवाला पिछले चुनाव में यहां पर 27.62% मत लेकर तीसरे स्थान पर रहे। इसी तरह ही हमीरपुर में पिछली बार भाजपा प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक नरेंद्र ठाकुर को भी भरोसे में लेना होगा। हमीरपुर में निर्दलीय आशीष शर्मा 47.09% मत लेकर चुनाव जीते थे। कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. पुष्पेंद्र वर्मा 23.65% मत लेकर यहां दूसरे स्थान पर रहे। पूर्व विधायक नरेंद्र ठाकुर 23.25% प्रतिशत मत लेकर तीसरे स्थान ले सके थे।

जनता फिर भेजेगी विधानसभा, बनेगी भाजपा सरकार : केएल 

 नालागढ़ के निर्दलीय विधायक केएल ठाकुर ने विधानसभा अध्यक्ष की ओर से त्यागपत्र स्वीकार करने पर संतोष जताया है। उन्होंने कहा कि यदि उनके त्यागपत्र शुरू में ही स्वीकार कर लिए जाते तो लोकसभा चुनाव ही यह उपचुनाव भी हो जाता । इससे न केवल सरकारी खर्चा बचता बल्कि सारी चुनावी प्रक्रिया से भी दोबारा नहीं गुजरना पड़ता। उन्होंने उम्मीद जताई कि नालागढ़ की जनता फिर से उन्हें भारी बहुमत से विधानसभा में भेजेगी और जल्द ही प्रदेश में भाजपा की सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि छह अन्य विधान सभा क्षेत्रों के साथ ही इन तीन विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव भी हो जाते तो मतदाताओं को भी बार-बारहोने वाली परेशानी से बचाया जा सकता था।  त्यागपत्र स्वीकार करना विधानसभा अध्यक्ष का अधिकार क्षेत्र है। इसलिए वे यही कहना चाहेंगे कि अंत भला सो भला।

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