



Rajasthan Election-2023: राजस्थान में दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों- बीजेपी और कांग्रेस (Congress) में अंदरूनी सत्ता संघर्ष चरम पर है. 25 नवंबर के विधानसभा चुनावों के लिए मैदान में उतारे गए उम्मीदवारों की सूची में इसकी झलक मिलती है. भले ही दोनों पार्टियां यह कबूल करने से कतराएंगी. फिर भी बिना किसी विवाद के यह साफ दिखाई दे रहा है कि भाजपा और कांग्रेस राज्य संगठन में पीढ़ीगत बदलाव लाने की कोशिश में हैं. इसका उद्देश्य आंतरिक कमियों को उजागर किए बिना बिना किसी बाधा के नई पीढ़ी के नेतृत्व को तैयार करना, आगे बढ़ाना और उनको अधिकार सौंपना है. इसे देखते हुए भाजपा और कांग्रेस में एक दिलचस्प राजनीतिक लड़ाई दिखाई दे रही है.
वरिष्ठ पत्रकार केवी प्रसाद के मुताबिक राजस्थान में हर चुनाव में सत्ता के बदल जाने की परंपरा को देखते हुए कोई भी पार्टी अपने कोर वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहती है. इस मामले में भाजपा ज्यादा सतर्क है और कई कारणों से इस अवसर को गंवाना नहीं चाहेगी. भारत के हिंदी भाषी इलाकों में अपना गढ़ बरकरार रखने के लिए राजस्थान भाजपा के प्रमुख राज्यों में से एक बना हुआ है. अगर राज्य की सत्ता के हर चुनाव में बदलने का क्रम जारी रहा तो 3 दिसंबर को नतीजे घोषित होने पर भाजपा को विजयी होना चाहिए. राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं.
मुख्यमंत्री पद की सशक्त दावेदार वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) और उनके वफादारों को दूसरी लिस्ट की घोषणा तक के लिए इंतजार कराकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने साफ संदेश दिया था. राजे को अब पार्टी की रणनीति के हिसाब से चलना होगा और वे अपनी योजनाओं के मुताबिक नहीं चल सकती हैं. बहरहाल संतुलन बनाते हुए शनिवार को दूसरी सूची घोषित कररके भाजपा ने राजे को उनके झालरापाटन सीट से फिर उम्मीदवार बनाया. गौरतलब है कि सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली अपनी विद्याधर नगर से बीजेपी ने सांसद दीया कुमारी को मैदान में उतारने का फैसला किया है. दीया कुमारी को भी संभावित सीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है. बीजेपी ने कई दूसरे सांसदों को भी मैदान में उतारने का फैसला किया है, जो मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो सकते हैं. दूसरी ओर राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (, Ashok Gehlot) भी चुनावी मैदान में उत्तराधिकार की लड़ाई से जूझ रहे हैं. गहलोत ने युवा सचिन पायलट (Sachin Pilot) की उन्हें पद से हटाने की कोशिश को टालने में अपनी काबिलियत दिखाई है. राज्य की राजनीति में ‘जादूगर’ के नाम से जाने जाने वाले गहलोत कई चालें जानते हैं. राजनीतिक चुनौतियों से निपटने की क्षमता ने अलग-अलग समय में उनके करियर को सहारा दिया. गहलोत माली समुदाय से आते हैं और सचिन पायलट की तरह ओबीसी हैं, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं. अगर कांग्रेस लगातार दूसरी बार सत्ता में आती है, तो गहलोत पायलट को आसानी से पद नहीं देंगे. यहीं से लड़ाई तेज होगी.