



Chaitra Navratri 2025: मां चंद्रघंटा के माथे पर अर्धचंद्र सुशोभित है. इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है. इनके दसों हाथों में अस्त्र-शस्त्र हैं और इनकी मुद्रा युद्ध की मुद्रा है. इनकी पूजा करने वाला व्यक्ति पराक्रमी और निर्भय हो जाता है. तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं. आज चैत्र नवरात्र का तीसरा दिन है. यह साहस और आत्मविश्वास पाने का दिन है. इस दिन हर तरह के भय से मुक्ति के लिए माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है. जिन लोगों की कुंडली में मंगल कमजोर है, उनके लिए माता चंद्रघण्टा की पूजा विशेष होती है. नवरात्रि के तीसरे दिन विशेष साधना से व्यक्ति निर्भय हो जाता है. ऐसा माना जाता है कि माता चंद्रघंटा की पूजा से ना सिर्फ भय से मुक्ति मिल जाती है. बल्कि साहस और शक्ति में भी अपार वृद्धि होती है. नवदुर्गा के इस स्वरूप की उपासना से जन्म-जन्मांतर के पाप और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
मां चंद्रघंटा की कथा| Maa Chandraghanta ki katha in Hindi
पौराणिक काथ के अनुसार, मां दुर्गा का पहला रूप मां शैलपुत्री और दूसरा मां ब्रह्मचारिणी स्वरूप जो भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए माना जाता है. जब मां ब्रह्मचारिणी भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं . मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब संसार में दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था. साथ ही उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था. महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था. वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था। जब देवताओं को महिषासुर इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे. ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने देवताओं की बात सुनकर क्रोध प्रकट किया और क्रोध आने पर उन तीनों के मुख से जो ऊर्जा निकली. उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं. उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया. इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।
मंगल दोष से मुक्ति
कुंडली में मंगल कमजोर है या मंगल दोष है तो देवी की उपासना बेहद कारगर है. लाल रंग के वस्त्र धारण करके मां की आराधना करें. मां को लाल फूल, ताम्बे का सिक्का या ताम्बे की कोई वस्तु चढ़ाएं. मां को हलवा या मेवे का भोग भी लगाएं. मां के किसी भी मंत्र का जाप करें. फिर मंगल के मूल मंत्र का जाप करें. मंगल का मंत्र होगा- ॐ अं अंगारकाय नमः. मां को अर्पित किए गए ताम्बे के सिक्के को अपने पास रख लें।