Home » Uncategorized » Parivartini Ekadashi 2024: चातुर्मास के शयनकाल में परिवर्तिनी एकादशी पर ही क्यों करवट लेते हैं भगवान विष्णु,

Parivartini Ekadashi 2024: चातुर्मास के शयनकाल में परिवर्तिनी एकादशी पर ही क्यों करवट लेते हैं भगवान विष्णु,

Oplus_131072

Parivartini Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का विशेष महत्व होता है और सभी एकादशी से कोई न कोई धार्मिक कथा जुड़ी होती है. भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन किए व्रत-पूजन से पापों से मुक्ति मिलती है. बता दें कि इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी का व्रत शुक्रवार, 13 सितंबर 2024 को रखा जाएगा.परिवर्तिनी एकादशी का महत्व इसलिए भी और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि, इसी एकादशी में भगवान विष्णु  शयनकाल के दौरान करवट बदलते हैं. भगवना विष्णु के करवट बदलने के कारण इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है. लेकिन चातुर्मास की चार माह की अवधि में भगवान विष्णु इसी दिन करवट क्यों बदलते हैं. यह सवाल एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें परिवर्तिनी एकादशी से जुड़ी यह कथा बताई….

परिवर्तिनी एकादशी कथा

कृष्ण कहते हैं, हे युधिष्ठिर! त्रेतायुग में मेरा एक भक्त था, जिसका नाम बलि था. वैसे तो बलि दैत्य कुल का था लेकिन वह प्रतिदिन श्रद्धा-भाव से मेरा पूजन करता था. साथ ही असुरराज बलि हमेशा यज्ञ कर ब्राह्मणों को दान भी देता. एक दिन उसे अपनी शक्ति का अहंकार हो गया और उसने इंद्रलोक पर आक्रमण कर उसे जीत लिया. इसके बार उसने समस्त देवताओं को इंद्रलोक छोड़ने पर मजबूर कर दिया.बलि से परेशान होकर इंद्र समेत सभी देवगण बैकुंठ धाम आकर मंत्रों का उच्चारण कर मेरी स्तुति की, जिससे मेरी निद्रा भंग हो गई और मैंने करवट ले लिया. निद्रा भंग होने पर मैंने देवताओं से कहा कि आपलोग चिंतित न हों मैं जल्द ही कुछ उपाय सोचूंगा, जिससे आपको इंद्रलोक मिल जाए. जब सारे देवता बैकुंठ धाम से चले गए तब मैं वामन का रूप धारण कर असुरराज बलि के यहां पहुंच गया. मैंने बलि से तीन पग भूमि दान में देने को कहा. वह दानवीर था और बलि तुरंत मुझे तीन पग भूमि देने को तैयार भी हो गया. इसके बाद मैंने अपना आकार बढ़ा लिया. एक पग में मैंने धरतीलोक और दूसरे पग में स्वर्गलोक माप लिए. जब मैंने बलि से कहा कि मैं अपना तीसरा पग कहां रखूं तो उसने अपना मस्तक आगे कर दिया. मेरा पग (पैर) मस्तक पर लगते ही बलि पाताल चला गया. लेकिन मैं उसकी भक्ति और भाव से बहुत प्रसन्न हुआ. इसलिए मैंने उसे पाताललोक का राजा बना दिया।

Leave a Comment

[democracy id="1"]