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सीपीएस के दर्जे पर रोक लगाने से हाईकोर्ट का इनकार, प्रदेश सरकार को 8 मई को पक्ष रखने की दी रियायत

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को मुख्य संसदीय सचिवों (सीपीएस) को दिए दर्जे पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया। इसके अलावा प्रदेश सरकार ने कोर्ट से अपना पक्ष रखने के लिए 8 और 9 मई तक का समय मांगा था, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया। अब मामले की अगली सुनवाई 8 मई को होगी। लगातार तीन दिन तक चली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस पूरी हो गई है। सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ अधिवक्ता मामले में पैरवी करेंगे। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश विपिन चंद नेगी की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। सरकार की ओर से 23 मई को अदालत में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें अदालत से गुहार लगाई गई थी कि इस मामले को 8 और 9 मई को सुना जाए। सरकार ने मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं को नियुक्त किया है, जिसकी वजह से प्रदेश सरकार बुधवार को हाईकोर्ट में अपना पक्ष नहीं रख सकी। अदालत ने हलफनामा मंजूर करते हुए कहा कि सरकार 8 मई को अपना पक्ष अदालत में रखे। अदालत में सीपीएस सुंदर सिंह ठाकुर की ओर से पेश अधिवक्ता देवेन खन्ना ने डेढ़ घंटे तक मामले में बहस की। उन्होंने अदालत को बताया कि हिमाचल प्रदेश ने 2006 में जो अधिनियम बनाया, वह संविधान के खिलाफ नहीं है। राज्य सरकार ऐसे विषय पर कानून बना सकती है। उन्होंने अदालत को बताया कि सीपीएस को मंत्रियों वाली कोई सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। उन्हें न कैबिनेट रैंक दिया है। सीपीएस निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। दूसरी ओर याचिकाकर्ता सतपाल सिंह सत्ती की ओर से पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह पेश हुए। उन्होंने दलीलें दी कि सीपीएस की नियुक्तियां संविधान के खिलाफ हुई हैं। उन्होंने अदालत से गुहार लगाई कि सीपीएस को जो दर्जा दिया है, उस पर स्टे लगाया जाए, जिसे अदालत ने अस्वीकार कर दिया।

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