



कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, बस इसे पूरी मेहनत और शिद्दत के साथ शुरुआत करने की जरूरत होती है. वैशाली जिला के पटेढ़ी बेलसर प्रखंड स्थित मिश्रोलिया अफजलपुर गांव के रहने वाले सुबोध सहनी 2007 से 2014 तक लुधियाना के किसी कपड़ा फैक्ट्री में शर्ट और कुर्ता बनाने का काम करते थे. रोजाना 12 घंटे ड्यूटी करने के बाद 10 हजार ही प्रति महिना मिल पाता था. 2014 में सुबोध सहनी लुधियाना से बिहार वापस लौट आये और बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में रहकर शर्ट और कुर्ता बनाना कर बेचने लगे. हालांकि कोरोना महामारी के दौरान धंधा बंद हो गया और रूम रेंट भी देना मुश्किल होने लगा. इसके बाद सुबोध ने सोचा कि गांव में ही रहकर काम करेंगे. 2021 में सुबोध सहनी ने जमीन गिरवी रखकर कपड़ा फैक्ट्री स्टार्ट कर दिया और कुर्ता और शर्ट बनाने लगे. इसके बाद तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. सुबोध सहनी के कारोबार का सालाना टर्नओवर 80 लाख को पार कर गया है ओर तीन दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया है.
जमीन गिरवी रखकर सुबोध ने शुरू किया कपड़ा फैक्ट्री
सुबोध सहनी ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान जब धंधा बंद हो गया तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. पूंजी भी कम थी और परिवार चलाने के लिए कुछ तो करना हीं था. इसलिए पुराने धंधे को शुरू करने के फैसला लिया. इसके लिए गांव के लोगों के पास हीं दो एकड़ जमीन गिरवी रखकर 10 लाख इकट्ठा किया. इस पैसे से कपड़ा सिलाई के लिए मशीन खरीदा. धीरे-धीरे काम बढ़ता गया।
फिलहाल 40 लोग काम कर रहे हैं और एक-एक कर 30 मशीन भी खरीद लिया है. इस फैक्टरी के लिए रॉ मेटेरियल दिल्ली और गुजरात से मंगवाते हैं. ऑर्डर इतना रहता है कि मांग पूरा नहीं हो पाता है. बिहार से लेकर नेपाल तक कुर्ता और शर्ट की डिमांड है. इस फैक्टरी में 150 रुपये से लेकर 650 रुपये में कुर्ता और शर्ट तैयार होता है.
80 लाख से अधिक है कपड़ा फैक्ट्री का सालाना टर्नओवर
सुबोध सहनी ने बताया कि 19 वर्ष के उम्र में हीं लुधियाना कमाने के लिए चले गए थे. वहां दोस्त के साथ मिलकर हीं काम करते थे. लेकिन मेहनत के अनुसार पैसे नहीं मिल पाता था. घर आने के फैसला सही साबित हुआ और इस कपड़ा फैक्ट्री ने किस्मत बदलने का काम किया. वहीं इस कपड़ा फैक्ट्री का सालाना टर्नओवर 80 लाख के पार पहुंच गया है. सुबोध सहनी के फैक्ट्री में काम करने वाले राकेश कुमार बताते हैं कि पहले कोलकाता में काम करते थे, लेकिन कोलकाता आने-जाने में परेशानी होती थी. अब अपने गांव मे हीं 365 दिन काम मिल रहा है. कुर्ता और शर्ट पर डिजाइन का काम करते हैं. यहां 12 घंटे काम कर 18 हजार कमा लेते हैं. जिससे परिवार का गुजर-बसर चल जाता है और बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।